भगवान् बुद्ध चालीसा
दोहा --
चक्रवर्ती सम्राट जु,...
विश्व धर्म के बुद्ध।
नमो नमो शत कोटि तिहि ,
करि इकाग्र मन शुद्ध।।
सुगत तथागत बुद्ध को,
रखो ह्रदय में लाइ।
जात बुद्धि सतकर्म में,
लीन रहै ढृढ़ ताई।।
जय जय बुद्ध दया के सागर ।
जय अहर्त तिहुँलोक उजागर।।
राग द्वेष महा मोह नासक ।
परम ज्ञान सत्य के प्रकाशक।।
नमन करौ शत कोटि अपारा ।
पूजत तुम्हें सकल संसारा।।
अति मंगलमय तुव उपदेसा ।
उर में राखौ देश विदेशा ।।
तुम सो आजु न देव पुराना ।
जग के गुरुवार तुम्हीं महाना।।
बुद्ध बिनु नहिं सत्य कल्याना।
सपनै लहै न पद निर्वाणा।।
नरके भक्षक आलवक जैसे ।
अंगुलिमाल द्विज डाकू ऐसे।।
कश्यप जिमि हवन यज्ञ कारी ।
बुद्ध के बने परम पुजारी।।
हिंसक यज्ञ तजौ कूटदंता ।
तसहिं त्यागौ उग्गत तुरंता।।
चिंचा ब्राम्हणी युवती नारी ।
रची षड़यंत्र बुद्ध सो हारी।।
तिमि मागधी अति रूपवंता ।
बुद्ध सो बैर रखी अनंता।।
बुद्ध जिमि नहिं जग में दयाला ।
की निज शिष्या तिय चंडाला।।
बुद्ध के शिष्य नाई उपली ।
प्रभु कहौ सब जात अति जाली।।
बुद्ध सैम कोउ नहीं वैरागी ।
ज्ञान हेतु जिन सम्पति त्यागी।।
परम सुंदरी गोपा नारी ।
निज राज की सत्ता विसारी।।
बोधगया कीन्हों तप भारी ।
कामदेव की सेना जारी।।
बुद्ध शरण जो कोई आवै ।
भूत प्रेत भय मिटिजावै।।
भारत माँ को बुद्ध ही प्यारा ।
आँचल में ले करती दुलारा।।
विविध धर्म के शीश झुकाते।
अति मधुर से गीत सब गाते।।
गौतम बुद्ध के तत्व ज्ञाना।
भारत मुद्रा करती बखाना।।
संविधान हूँ में पाली भाषा।
चुप क्योँ कल्पत शूद्र निराशा।।
सुखी नहीं जड़ बुद्ध ज्ञाना।
अबहुँ वाको सब करूँ ध्याना।।
बौद्ध धर्म ही द्वेष मिटावै।
समता न्याय मैत्री सिखावै।।
रखै शील स्वतंत्रा भारी।
अरु सुख पावै सब नर नारी।।
बुद्ध पूर्व भारत अति हीना।
अंध भक्ति में सब जान लीना।।
धूर्त निशाचर अधम सब लोगा।
जन सो ठगि-ठगि करै सुभोगा।।
तामै वैदिक अधम महाना।
हिंसा धर्म करावै नाना।।
करुणामयी बुद्ध भगवाना।
सत्य धर्म सब कीन्ह बखाना।।
कुल -गोत्र धर्म के अभिमानी।
तर्क सो होई पानी - पानी।।
गिरौ चरण तब बुद्ध हिं आई।
वेद धर्म सब दियो हटाई।।
बुद्ध हिं शिव बने भगवाना।
सत्य इतिहास देत प्रमाणा।।
उसिरन - शीर्ष जटा बनाई।
बुद्ध ऊर्णा त्रिनेत्र कहाई।।
बुद्ध ज्ञान जो कीन्ह प्रचारा।
ताहि मान्यो गंग की धारा।।
बुध स्वरूप विविध करि जाला। यह शिव बने तांत्रिक काला।।
राम विष्णु बुद्ध के ही स्थाना।
जानत ज्ञानी विज्ञ सुजाना।।
पापी ढोंगी धूर्तन जेते।
सत्य नाम ना कबहुँ हिय लेते।।
सच्चे धर्मी ज्ञानी संता सुमिरन करै बुद्ध भगवंता............
दोहा ..........
विमल मन सो एकबार हूँ ,
लेत बुद्ध को नाम।
भूत प्रेत हिं कौन कहूँ
काँपे देव् तमाम।।
यह शुचि बुध चालीसा
पढ़ै जो एक हूँ बार।
पढ़ै जो एक हूँ बार।
पोप लीला धूर्त्तन की
जानी लेत विस्तार।।
अर्हत बुद्ध भगवन की जय।
करुणामयी बुद्ध भगवन की जय।.
भंते सिहल दीप
जहानाबाद , बिहार

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